ई.वी.रामासामी पेरियार दर्शन-चिंतन और सच्ची रामायण

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सच्ची रामायण ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ की बहुचर्चित और सबसे विवादास्पद कृति रही है. पेरियार रामायण को एक राजनीतिक ग्रंथ मानते थे. उनका कहना था कि इसे दक्षिणवासी अनार्यों पर उत्तर के आर्यों की विजय और प्रभुत्व को जायज ठहराने के लिए लिखा गया और यह गैर-ब्राम्हणों पर ब्राम्हणों तथा महिलाओं पर पुरुषों के वर्चस्व का उपकरण है.
रामायण की मूल अन्तर्वस्तु को उजागर करने के लिए पेरियार ने ‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुवादों सहित अन्य राम कथाओं, जैसे-: ‘कंब रामायण’, तुलसीदास की रामायण ‘रामचरित मानस’, ‘बौध्द रामायण’, ‘जैन रामायण’ आदि के अनुवादों तथा उनसे संबंधित ग्रंथों का चालीस(40) वर्षों तक अध्ययन किया और ‘रामायण पादीरंगल’ (रामायण के पात्र) मे उसका निचोड़ प्रस्तुत किया. यह पुस्तक 1944 मे तमिल भाषा में प्रकाशित हुई. इसका अंग्रेजी संस्करण ‘द रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ नाम से 1959 मे प्रकाशित हुई.
यह किताब हिंदी मे 1968 में ‘सच्ची रामायण’ नाम से प्रकाशित हुई थी. जिसके प्रकाशक लोकप्रिय बहुजन कार्यकर्ता ललई सिंह यादव थे. 9 दिसम्बर, 1969 को तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया और पुस्तक की सभी प्रतियों को जब्त कर लिया. ललई सिंह यादव ने इस प्रतिबंध और जब्ती को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. वे हाईकोर्ट में मुकदमा जीत गये. सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. 16 सितम्बर, 1976 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सर्वसम्मति से फैसला देते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में निर्णय सुनाया.
प्रस्तुत किताब मे ‘द रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ का नया, सटीक, सुपाठ्य और अविकल हिंदी अनुवाद किया गया है. साथ ही इसमें ‘सच्ची रामायण’ पर केन्द्रित लेख व पेरियार का जीवन-चरित भी दिया गया है, जिससे इसकी महत्ता बहुत बढ़ गई है. यह भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन के इतिहास को समझने के लिए इच्छुक हर व्यक्ति के लिए एक आवश्यक पुस्तक है.
—– ✍️ राजेश्वरी शाक्य
सम्पादक : ‘सच्ची रामायण’

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