शूद्रों की खोज

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हिंदुओ के जिस एकमात्र वर्ग की ओर से इस पुस्तक का स्वागत होने की संभावना है वे लोग है जो समाज सुधार की आवश्यकता ओर अनिवार्यता में विश्वास कहते है । उनकी राय में इस समस्या को इस आधार पर लोगो के लिए टालने का कोई औरचित्य नही है की यह एक ऐसी समस्या है जिसके समाधान में निश्चय ही एक लंबा समय लग जाएगा और इसके लिए आने वाली कई पीढ़ियो के प्रयासों की दरकार होगी । एक घोर हिंदू राजनीतिज्ञ भी , यदि यह ईमानदार है तो, यह स्वीकार करेगा कि साप्रदायिकता का जो घातक स्वरूप हिंदू समाज के संगठन में अंतर्निहित है और जिसे राजनीतिक मानसिकता वाले हिंदू जान-बुझकर अनदेखा ओर निलंबित करना चाहते है , इस साप्रदायिकता से पैदा होने वाली समस्याए हर मोड़ पर उन्ही राजनीतिगयो के संकट में डालने के लिए लौट-लौट आती है। ये समस्या तत्क्षण की कठिनाइया नही है । ये हमारे स्थाई कठिनाइयां है । अर्थात प्रति क्षण की कठिनाइयां है ।मुझे यह जानकर प्रसन्नता होती है कि हिंदुओं का ऐसा गर्व विद्यमान है । इनकी संख्या कम हो सकती है किंतु वे मेरा मुख्य आधार है और मेरा तर्क उन्ही को सम्बोधित है। 👇

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