Description
तृतीय रत्न 📚
पुरोहित ब्राह्मण, गर्भिणी स्त्री के पति के घर पर न होने का मौका देखकर , उसे दिन, नक्षत्र आदि के प्रभाव को बताने वाले शब्द जोर-जोर से बताता हुआ, गर्भिणी के घर के सामने आकर रुकता है ।
गर्भिणी द्वारा इन शब्दों को सुनते ही , वह थोड़ी-सी सूखी भिक्षा सामग्री लेकर बाहर आती है 👇
जोशी : स्त्री के हाथ मे थोड़ी-सी भिक्षा सामग्री देखकर , मन ही मन बहुत निराश होता है । ,,,,देवी ! मुझ ब्राह्मण के लिए यही इतनी-सी भिक्षा ?
स्त्री: क्यों महाराज ! क्या हुआ ? क्या यह भिक्षा नही है ? मैं एक गरीब स्त्री हू मेरे पति की तो केवल चार रुपये मासिक ही आमदनी है !!
जोशी: देवी ! यह भिक्षा नही , कौन कहता है ? लेकिन इतनी-सी भिक्षा से मेरा पेट कैसे भरेगा ? और में तेरा कल्याण कैसे करूंगा ?
स्त्री : (कुछ परेशान-सी होकर ) जाओ बाबा , ब्राह्मण की जोर जर्बदस्ती ही बहुत है । हम आप लोगों के पेट की चिन्ता कहा तक करे ? आप लोग कोई कारोबार क्यो नही कर लेते ?
जोशी: ( नोकरी धन्धा तो भाग्य में ही लिखा दिखता है , तू क्या बता रही है- 😡
स्त्री:(थोड़ा सोचते हुए) उस स्त्री का बच्चा तो उसके अपने भाग्य से मरा है ।
जोशी: ( थोड़ा हंसकर ) भाग्य से मरा है ?
स्त्री: भाग्य से नही तो और किससे ? तुम्हे पेट भर के भिक्षा नही दी, इसलिए मरा है ?
जोशी: भिक्षा थोड़ी ही क्यो न हो ,पर हमें सन्तोष देने वाली तो हो ।
स्त्री: उसने यदि तुम्हे सन्तोष देने वाली भिक्षा दी होती तो क्या तुम उसके बच्चे को बचा लेते ?
जोशी: इसमे सन्देह कैसा ? यदि उसने भिक्षा से मुझे सन्तुष्ट किया होता तो निस्चित ही मैने उसकी सारी ग्रह बाधाए दूर की होती और क्या वह पुत्रवती नही होती ?
स्त्री का उत्तर👇
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